25 मई 2010

बबुआ ! कन्या हो या वोट...............

भारतीय संस्कृति में दान को बड़े विराट अर्थॊं में स्वीकारा गया है। कन्यादान और मतदान दोनों में अनेक समानताएं  हैं। कन्यादान का दायरा सीमित होता है वहीं मतदान के दायरे में सारा देश आ जाता है । कन्यादान एक मांगलिक उत्सव है.......मतदान उससे भी बड़ा मांगलिक उत्सव है। कन्यादान करना एक उत्तरदायित्व है.....मतदान करना और बड़ा उत्तरदायित्व है। कन्यादान का उत्तरदायित्व पूर्ण हो जाने पर मन को अपार शान्ति मिलती है। मतदान के बाद आप भी अमन-शान्ति चाहते हैं। कन्यादान के लिए लोग दर-दर भटक कर योग्य वर की तलाश करते हैं परन्तु मतदान के लिए क्या शीलवान (ईमानदार) पात्र  की तलाश करते हैं.......?  यह एक बड़ा प्रश्न है इसका उत्तर आप अपने  दिल  में टटोलिए अथवा इस लोकगीत में खोजिए!

           बबुआ ! कन्या हो या वोट...............

                                         -डॉ0 डंडा लखनवी


बबुआ ! कन्या हो या वोट ।
दोनों  की   गति  एक है बबुआ ! दोनों  गिरे कचोट ।।
                                 õ
कन्या   वरै  सो  पति  कहलावै, वोट  वरै   सो   नेता,
ये   अपने  ससुरे   को  दुहते, वो  जनता   को  चोट ।।
                                õ
ये   ढूंढें    सुन्दर    घर - बेटी,  वे   ताकें    मत -  पेटी,
ये  भी   अपनी गोट   फसावैं, वो  भी   अपनी   गोट ।।
                                õ
ये   भी  सेज  बिछावैं  अपनी,  वो  भी   सेज   बिछावैं,
इतै   बिछै  नित कथरी-गुदड़ी  उतै  बिछैं  नित नोट ।। 
                                õ
कन्यादानी    हर    दिन    रोवैं,  मतदानी    भी    रोवैं,
वर   में   हों  जो   भरे कुलक्षण,  नेता  में   हों   खोट ।।
                                õ
कन्या    हेतु     भला  वर  ढूंढो,   वोट  हेतु  भल  नेता,
करना    पड़े   मगज   में  चाहे   जितना   घोटमघोट ।।
                            õ  õ õ  õ

5 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर रचना है ... कन्यादान के लिए भले ही योग्य वर की तलाश की जाती होगी ... पर मतदान के लिए आज भारत में याग्यता के अलावा सबकुछ देखा जाता है ... जैसे कि जाती, धर्म, प्रांतीयता इत्यादि ।

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  2. बहुत अच्छी प्रस्तुति।
    राजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है।

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  3. वाह...!
    कमाल की रचना है!
    मन प्रसन्न हो गया!

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