18 मार्च 2010

विज्ञान और ज्योतिषशास्त्र

                            -डॉ० डंडा लखनवी


आजकल अनेक टी०वी० चैनल पर ज्योतिषशास्त्र से जुडे़ कार्यक्रम प्रमुखता से प्रसारित हो रहे हैं। प्राय: ऐसा  टी०आर०पी० बढ़ाने के लिए होता है। इस कार्यक्रम में ज्योतिषियों के अपने तर्क होते हैं और वैज्ञानिकों के अपने। दोनों में से कोई भी हार मानने के लिए तैयार नहीं होता। अंतत: ज्योतिषी महोदय को क्रोध आ जाता है और वे अपनी विद्या-बल के प्रभाव से विज्ञानवादी वक्ता को सबक सिखाने पर तुल जाते हैं। यह सबक येनकेनप्रकारेण उसे भयभीत करने का होता है। इस काम के लिए वह मनोविज्ञान का भरपूर उपयोग करता है। ज्योतिषी महोदय के तेवर धीरे-धीरे आक्रामक होते जाते है और विज्ञानवादी के स्थिति रक्षात्मक । कुल मिला कर यह एक ऐसा स्वांग होता है जो दिन भर चलता है। दर्शकगण हक्का-बक्का हो कर दोनों के तर्क-वितर्क में डूबते-उतराते रहते हैं।इस संबंध में मेरा मानना है कि.......


ज्योति शब्द प्रकाश अर्थात आलोक का द्योतक है। प्रकाश के सम्मुख आने पर वे सभी चीजें दिखने लगती हैं जो अंधेरे के कारण हमें नहीं दिखाई पड़ती हैं।......जिस प्रकार सजग शिक्षक अपने विद्यार्थियों के आचरण और व्यवहार में निहित गुण-दोषों को देखकर उसके जीवन का खाका खीच देता है। वैसे ही ज्योतिषी भी जातक के जीवन में घटित होने वाली टनाओं का अनुमान लगाता है, खाका खीचता है। इस कार्य में वह धर्म, दर्शन, गणित, अभिनय-कला, नीतिशात्र, तर्कशास्त्र, मनोविज्ञान, पदार्थ-विज्ञान, शरीर-विज्ञान, खगोल-विज्ञान, समाजशात्र तथा लोक रुचि के नाना विषयों का सहारा लेता है। वस्तुत: ज्योतिषशास्त्र एक सामाजिक विज्ञान है। इस विज्ञान की प्रयोगशाला समाज है। सामाजिक विज्ञानों के लिए अकाट्य सिद्धांतों का निरूपण करना कठिन होता है। सामाजिक परिवर्तन की गति बहुत धीमी होती है। इसके प्रभाव भी तत्काल दिखाई नहीं देते हैं। यह बात ज्योतिषशास्त्र पर भी लागू होती है। अत: अन्य सामाजिक विज्ञानों की भांति इस विज्ञान के निष्कर्ष शतप्रतिशत खरे होने की कल्पना आप कैसे कर सकते हैं? इस  निष्कर्ष विविधता का एक यह भी कारण  है कि कु़दरती तौर पर संसार का हर व्यक्ति अपने आप में मौलिक होता है। उसके जैसा कोई दूसरा व्यक्ति नहीं होता है। इस आधार  पर हर व्यक्ति का भविष्य भी दूसरे से भिन्न ठहरेगा। अत: शुद्ध विज्ञान की भांति इससे तत्काल और सटीक परिणामों की आशा करना व्यर्थ है।............ हाँ किसी धंधे को चमकाने के लिए मीडिया एक अच्छा माध्यम है । ‘ज्योतिषियों’ और मीडिया की आपसी साठगांठ से दोनों का धंधा फलफूल रहा है।.वर्तमान को सुधारने से भविष्य सुधरता है। इस तथ्य जो मनीषी परिचित हैं उन्हें मालूम हो जाता है कि उनका भविष्य कैसा होगा।

3 टिप्‍पणियां:

  1. आलेख बहुत बढ़िया रहा!
    बहुत सी जानकारियाँ मिलीं!

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  2. डा. साहब, आदाब
    वाकई यही हाल है चैनल पर....आपने सही मुद्दा उठाया है.
    वैसे ये डंडे और तहज़ीब के शहर लखनऊ का तालमेल कुछ अजीब नहीं है. हा हा हा.

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  3. बिलकुल ठीक कह रहे हैं आप, मैं अपने एक साथी को जनता हूँ जो ३ महीने के कोर्स के बाद प्रकांड ज्योतिषी हो गए हैं , और कुछ वी आई पी के बदौलत २ -३ चैनलों पर महा विद्वान् के रूप में आते हैं ....
    आपके गीतों में धार है डॉ साहब !
    शुभकामनायें

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